शहर में
एक चित्रकला प्रदर्शनी थी
कुछ मार्डन आर्ट की
पेंटिंग्स लगी थीं
मैंने देखा उन्हें
गौर से
बार-बार
इधर से उधर
से
कुछ समझ न
आया
और लोग भी
आ रहे थे
गौर से देखते
थे
उन पेंटिंग्स को
सुन्दर रचना कहते
थे
और चल देते
थे
ख्याल मुझे जंचा
सुन्दर रचना
आलोचना तो उसकी
हो सकती है
जो समझ आए
वो कोई भी
रचना
जो समझ न
आए
सुन्दर ही हो
सकती है
गांठ बांध ली
यह बात
अब कोई भी
रचना
जो समझ न
आए
उस पर टिप्पणी कर देता हूं
सुन्दर रचना
आपसे भी अनुरोध है
आप आइए
मेरी कविता पढ़िए
यूं ही न
चले जाइएगा
कुछ आलोचना जरूर कर
जाइएगा
जिससे सुधार कर
सकूं
कुछ टिप्पणी जरूर लिख
जाइएगा
आगे विस्तार कर सकूं
और अगर देखुंगा मैं भी
रचना के नीचे
लिखा
सुन्दर रचना
तो समझ जाऊंगा
आपको रचना समझ
न आई।
- बृजेश नीरज
अति सुंदर रचना
ReplyDeleteबढ़िया कटाक्ष. वैसे ऐसा होता भी है, बिना पढ़े और समझे भी ऐसी टिप्पणी मिल जाती है. मतलब ये नहीं की लेखन खराब, पढने वाले के पास वक़्त की कमी... बहुत सुन्दर... शुभकामनाएँ.
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