Tuesday, 12 February 2013

सूरत बदल गयी


तेरी जुल्फ जो उड़ी घटा सी छा गयी
पलक जो झुकी तो सहर भी थम गयी

आपके सिवा कौन यहां जानता है मुझे
ये बात यहां ठहरने की वजह बन गयी

जब तलक थे साथ तुम अखरते ही रहे
जुदा होकर समझा इक आदत बन गयी

एक कलंक कुछ यूं मेरे साथ चल दिया
कुछ दिनों में यही मेरी पहचान रह गयी

सूखा पड़ा तो भूख से मर गए थे लोग
बारिश हुई इतनी कि भूख साथ रह गयी

कैद में था सुआ, उड़ने की ख्वाहिशें रहीं
आजाद हो गया तो मुसीबत बन गयी

इक आरजू के साथ चल दिए थे गांव से
वक्त कुछ गुजरा तो सूरत बदल गयी
                           - बृजेश नीरज

5 comments:

  1. बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद!

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  2. अच्छी रचना...
    हर शेर अर्थपूर्ण...

    अनु

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद!

      Delete

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