तेरी जुल्फ जो
उड़ी घटा सी
छा गयी
पलक जो झुकी
तो सहर भी
थम गयी
आपके सिवा कौन
यहां जानता है
मुझे
ये बात यहां
ठहरने की वजह
बन गयी
जब तलक थे
साथ तुम अखरते
ही रहे
जुदा होकर समझा
इक आदत बन
गयी
एक कलंक कुछ
यूं मेरे साथ
चल दिया
कुछ दिनों में
यही मेरी पहचान
रह गयी
सूखा पड़ा तो
भूख से मर
गए थे लोग
बारिश हुई इतनी
कि भूख साथ
रह गयी
कैद में था
सुआ, उड़ने की
ख्वाहिशें रहीं
आजाद हो गया
तो मुसीबत बन गयी
इक आरजू के
साथ चल दिए
थे गांव से
वक्त कुछ गुजरा
तो सूरत बदल
गयी
- बृजेश नीरज
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteअच्छी है
ReplyDeleteअच्छी रचना...
ReplyDeleteहर शेर अर्थपूर्ण...
अनु
बहुत बहुत धन्यवाद!
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