घोंघा भी चलता है तो रेत में, धूल में उसके चलने का निशान बनता है फिर मैं तो एक मनुष्य हूं। कुमार अंबुज
इस ब्लाग पर प्रकाशित किसी भी रचना का रचनाकार/ ब्लागर की अनुमति के बिना पुनः प्रकाशन, नकल करना अथवा किसी भी अन्य प्रकार का दुरूपयोग प्रतिबंधित है।
ब्लागर
बहुत सुंदर संदेश देती कविता.
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteआपका आभार गुरूजी!
ReplyDeleteआपको गुरू माना है तो शिष्य होने के नाते मेरा कर्तव्य है कि आपका अनुसरण करूं। आपके ब्लॉग का नियमित पाठक हूं इसलिए आप मुझे सूचित नहीं भी करेंगे तो भी चलेगा। आपकी सूचना का एक लाभ मुझे अवश्य मिलता है वह यह कि रचना के साथ सूचना के अंकन से मेरी रचना गौरवान्वित हो जाती है।
बसन्त पंचमी के दिन आपकी मेरे ब्लॉग पर उपस्थिति मेरे लिए सरस्वती मां के वरदान से कम नहीं।
बसन्त पंचमी आपको मंगलमय हो!
सादर!
पहली बार आपको पढ़ा ,प्रभावी लगी रचना .....
ReplyDeleteआप हमारे दर पर आयीं इसके लिए धन्यवाद! आशा है कि आप आगे भी मुझे अनुग्रहीत करती रहेंगी।
Deleteआपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद!
सादर!