Thursday, 14 February 2013

जबान बदल गयी


बादलों की टोक से यूं आहत हो गयी
इस दोपहर को किरन संज़ीदा हो गयी

शक्लो-सूरत बदलती है वक्त के साथ
शाम उतरी थी जमीं पर रात हो गयी

सुबह के इंतजार में लोग सोते रह गये
जरा सी चिंगारी बस्ती राख कर गयी

अल्फाज़ बदल गए मतलब बदल गए
इस बदलते दौर की जबान बदल गयी
                           - बृजेश नीरज

5 comments:

  1. बहुत सुंदर संदेश देती कविता.

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  2. आपका आभार गुरूजी!
    आपको गुरू माना है तो शिष्य होने के नाते मेरा कर्तव्य है कि आपका अनुसरण करूं। आपके ब्लॉग का नियमित पाठक हूं इसलिए आप मुझे सूचित नहीं भी करेंगे तो भी चलेगा। आपकी सूचना का एक लाभ मुझे अवश्य मिलता है वह यह कि रचना के साथ सूचना के अंकन से मेरी रचना गौरवान्वित हो जाती है।
    बसन्त पंचमी के दिन आपकी मेरे ब्लॉग पर उपस्थिति मेरे लिए सरस्वती मां के वरदान से कम नहीं।
    बसन्त पंचमी आपको मंगलमय हो!
    सादर!

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  3. पहली बार आपको पढ़ा ,प्रभावी लगी रचना .....

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    1. आप हमारे दर पर आयीं इसके लिए धन्यवाद! आशा है कि आप आगे भी मुझे अनुग्रहीत करती रहेंगी।
      आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद!
      सादर!

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