Sunday, 27 January 2013

कभी…..

     

कभी गुजरिए इधर
तो मेरे दर भी रूकिए
कुछ सुनाइए अपनी
कुछ मेरी सुनिए।

इक पल को बैठें
फुर्सत में साथ साथ
कुछ अपने दुख कहिए
कुछ मेरे सुख सुनिए।

कुछ बात हो
बीते समय की
कुछ याद आप करिए
कुछ मेरे अश्क सुनिए।

कहीं छू जाएं हाथ
फिर स्पंदित हों हृदय
आंखों से कुछ कहिए
मेरी आंखों की कुछ सुनिए।
                         - बृजेश नीरज

1 comment:

  1. कभी गुजरिए इधर

    तो मेरे दर भी रूकिए

    कुछ सुनाइए अपनी

    कुछ मेरी सुनिए।

    ब्लॉग लिखने वालों इच्छा !!

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