ऐसा कर दो कि तुम
नयनों में यूं बस जाओ
जो कुछ भी देखूं मैं तो
तुम ही तुम नजर आओ
धरती आकाश दूर क्षितिज में
जैसे आलिंगन करते हैं
मैं नदिया बन जाऊं तो
तुम समंदर बन जाओ
वन-वन भटके राम विरह में
व्यथित से, अकुलाए से
इन पुष्पों पौधों के पीछे
सीता मुझको दिख जाओ
वैसी सूरत दिखेगी उसको
जैसी जिसकी सोच है
मैं अपने प्रियतम को ढूंढूं
किसी को ईश्वर दिख जाओ
अब तो देर भई रे कान्हा
न इतना तुम तड़पाओ
लुका छिपी का खेल न खेलो
अब तो दरस दिखा जाओ
- बृजेश नीरज
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ReplyDeletehttp://paricharcha-rashmiprabha.blogspot.in/2013/01/7.html
ReplyDeleteThanks!
Deleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteकान्हा को आना ही होगा....
अनु
आभार!
Deletemere kanha sabki sunte hai....apki bhi jaroor sunegay...bahut sundar rachna
ReplyDeleteThank You Madam! I am also expecting same.
Deleteशैतान है कान्हा!
ReplyDeleteपर भाव को नही ठुकराएंगे,आएगें और आपकी लेखनी और जानदार बनाएंगे।
धन्यवाद!
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