चाहे कोई सितम
हो या हो
जाए हादसा
अब किसी भी
बात पर खुलती
नहीं जुबां
तू जो इतराता फिर रहा यूं
बन ठनकर
तेरे तसव्वुर में है
कोई और बेहतर
जहां
चिंगारियों ने पैरहन
में कई छेद
कर दिए
फूंकने पर कोयले
फिर भी देते
रहे धुआं
सबा की दस्तक
भी अब अखरने
लगी
लोगों ने बंद
कर लीं घर
की खिड़कियां
आंखों में सुर्खियां जो इतनी देखते
हो
रात भर ये
कहीं बैठकर खेलते
रहे जुआं
- बृजेश नीरज
तसव्वुर - अनुध्यान, ध्यान, विचार, ख्याल, कल्पना, तखैयुल
पैरहन - कुर्ता, कमीज, वस्त्र, वसन, लिबास
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