Thursday, 31 January 2013

प्रियतम को बुलाती रही


रात भर चांद आज रोता रहा
चांदनी मंद मुस्कुराती रही

आसमां किस कदर परेशां है
जमीं मिलन को तरसाती रही

पतंगा बेचैन मंडराता रहा
शमा झूम कर लहराती रही

भौरों की गुनगुन सदा दे रही
कलियां महक में इतराती रही

साहिल गुमसुम खामोश है
लहरें मस्ती में इठलाती रही

दीदार को मचलता तूफां है
बारिश दिलों को भिगाती रही

सबा देकर आवाज रात भर
अपने प्रियतम को बुलाती रही
                    - बृजेश नीरज


7 comments:

  1. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 02/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  2. वाह! बहुत सुन्दर प्यारा गीत ...

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    1. धन्यवाद!इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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