Saturday, 2 February 2013

मेरा घर


मत तोड़ो ये दीवारें
यह तो मेरा घर है
जिसे तुम मलिन समझे
यादों का ताजमहल है

छोटा है नहीं सजावट
टूटी फूटी सूरत इसकी
तेरे लिए व्यर्थ भला
मेरा तो ये राजमहल है

तेरी जगमग कोठी आगे
ये बस्ती पैबंद सी होगी
तुमको इससे बदबू आती
मेरा तो ये इत्रमहल है

तुम रहते राजपथ पर
तुम्हें संकरी गलियां खलतीं
मत छीनों आंख के सपने
ये तो मेरा स्वप्न महल है
-        बृजेश नीरज

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर ..अपना गाँव याद आ गया ..
    अपना घर किसी भी सूरत में महलों से कम नहीं होता .

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  2. वाह! क्या जज़्बात पिरोए हैं.
    भावनात्मक है.

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद!

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