Wednesday, 30 January 2013

सूरज


शनैः शनैः
सूर्य अस्त हो गया
पच्छम में

समय ने उतार दी
दिन की पहिरन

स्याह परिधान में
नया रूप निखर आया

पंछी का कलरव
वापसी का सूचक

लेकिन
गहराते अंधकार में
गुमसुम सा मैं

सोचता रहा
हिसाब करता रहा
दिन का लेखा जोखा
हताश निराश
असफलताओं का घेरा

फिर भी
दिल के कोने में
एक सूर्य
दैदीप्यमान है
अभी भी
कल को
प्रकाशित करने हेतु
सफलता की किरन के साथ।
               - बृजेश नीरज

4 comments:

  1. हौसला का दीप जलता रहे तो सफलता अवश्यम्भावी है... सुन्दर रचना, शुभकामनाएँ.

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  2. अच्छी रचना है!
    ईश्वर आपको सफलता के शिखर तक पहुंचाए!

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