Saturday, 26 January 2013

रचना - रात भर


चांद कसमसाता रहा रात भर
शुआ मुस्कुराती रही रात भर

याद यूं पैरहन बदलती रही
सबा गुनगुनाती रही रात भर

दीवाना राहों में भटकता रहा
तमन्ना बहलाती रही रात भर

बांसुरी के सुर मद्धम पड़ने लगे
इक सदा रूलाती रही रात भर
                    - बृजेश नीरज

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