ये खुशी की बात है कि जी रहे हम
जिंदगी कहां किसको मयस्सर हुई
ओढ़ ली हो रात ने चादर अंधेरी
ऐसे में रोशनी किसका मुकद्दर हुई
रोज गुज़र जाते हो इधर से लेकिन
मेरी ओर देखने की कभी चाहत हुई
मगरूर हैं जाने किस बात को लेकर
तकदीर कहां किसी की जागीर हुई
हम मुसाफिर हैं यूं ही चलते जाना
मंजिलें न सही, अपनी रहगुजर हुई
हम तो उम्मीद में थे बगावत होगी
नारे लिखने को कहां फुर्सत हुई
- बृजेश नीरज
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