घोंघा भी चलता है तो रेत में, धूल में उसके चलने का निशान बनता है फिर मैं तो एक मनुष्य हूं। कुमार अंबुज
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ब्लागर
कलम पर बन्दिश क्यूँ
ReplyDeleteशानदार रचना
सादर
आपका बहुत आभार यशोदा बहन! मेरे जैसे नौसिखिए रचनाकार के लिए आपकी अनुशंसा हिम्मत बढ़ाने वाली है।
Deleteसादर घन्यवाद!
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 23/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका बहुत आभार यशोदा बहन!
Deleteगहन और सटीक रचना!
ReplyDeleteसफल साहित्यक सफर के लिए आपको शुभकामनाएं
गहन और सटीक रचना!
ReplyDeleteसफल साहित्यक सफर के लिए आपको शुभकामनाएं
Thank You!
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteयूँ ही कलम चलती रहें
आपका आशीर्वाद बना रहे!
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