Saturday, 19 January 2013

रचना - धुंआ


हर तरफ ये अंधेरा क्यूं है
ये चांद आज पीला क्यूं है

गोशे में सिमटकर सो जाऐंगे
धरती का ये गलीचा क्यूं है

चूल्हे की आग पड़ गयी ठंडी
फिर हर तरफ धुंआ क्यूं है

कितने कलंक जी रहे हैं हम
फिर ये माथे पर टीका क्यूं है

ग़र आज़ाद हो गए हैं हम
तो कलम पर बंदिश क्यूं है
                 - बृजेश नीरज

9 comments:

  1. कलम पर बन्दिश क्यूँ
    शानदार रचना
    सादर

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    1. आपका बहुत आभार यशोदा बहन! मेरे जैसे नौसिखिए रचनाकार के लिए आपकी अनुशंसा हिम्मत बढ़ाने वाली है।
      सादर घन्यवाद!

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  2. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 23/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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    1. आपका बहुत आभार यशोदा बहन!

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  3. गहन और सटीक रचना!
    सफल साहित्यक सफर के लिए आपको शुभकामनाएं

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  4. गहन और सटीक रचना!
    सफल साहित्यक सफर के लिए आपको शुभकामनाएं

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  5. बहुत खूब
    यूँ ही कलम चलती रहें

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    1. आपका आशीर्वाद बना रहे!


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