Friday, 18 January 2013

रचना - घुटन


इतनी घुटन कि सांस ली नहीं जाती
इस सन्नाटे में आवाज दी नहीं जाती

अल्फाज़ कैद कर लिए हुक्मरानों ने
हाथों में ये कलम उठायी नहीं जाती

मेरा मकसद शोर-शराबा तो नहीं
फिर क्यों बात मेरी सुनी नहीं जाती

चूल्हे की आग अब ठंडी होने लगी
फिर जलेगा उम्मीद की नहीं जाती

सब्र करना ही हमारी तकदीर में है
हाथ की लकीर इसके आगे नहीं जाती
                            - बृजेश नीरज
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5 comments:

  1. सब्र करना हमारी ही तकदीर में है
    शुक्रिया बृजेश भाई
    अच्छी रचना पढ़वाई
    सादर
    पुनः
    ये वर्ड व्हेरिफिकेशन हटा दीजिये
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
    http://yashoda4.blogspot.in/
    http://4yashoda.blogspot.in/
    http://yashoda04.blogspot.in/

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    Replies
    1. धन्यवाद यशोदा जी! वर्ड वेरिफिकेशन हटाने का रास्ता खोज रहा हूं। यहां नया हूं इसलिए कई तकनीकी चीजों को समझने में समय लग रहा है।

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  2. रचना और भाव दोनो अति सुन्दर!

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  3. रचना और भाव दोनो अति सुन्दर!

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