Thursday, 17 January 2013

रचना - अंगारे



ठंडी नहीं हुई
आग अभी तक
कुछ अंगारे शेष हैं
राख के नीचे कहीं।

बचे ही रह जाते हैं
अंगारे
राख के ढेर में
नजरों से दूर
धीरे-धीरे सुलगते।

दहक उठते हैं
कभी-कभी
ज़रा सी हवा पाकर।
              - बृजेश नीरज

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