Friday 28 December 2012

लेख - राजनैतिक परिदृश्य


राजनैतिक परिदृश्य

     आजकल कांग्रेस परेशान है, एक तरफ राहुल देश की जनता पर जादू की छड़ी घुमाने में नाकाम हैं तो दूसरी तरफ अन्ना, रामदेव और केजरीवाल की तिकड़ी ने उसकी भद्द पीट दी है। सोने पर सुहागा यह कि नरेंद्र मोदी गुजरात चुनाव फिर जीत गए।
     किसी भी पूर्वाग्रह से ग्रसित हुए बगैर यदि देखा जाए तो पूरा मामला जनता से जुड़ाव का है। आज नरेंद्र मोदी, मायावती, मुलायम सिंह यादव, राज ठाकरे जैसे नेता क्यों मजबूत होते जा रहे हैं, इसके पीछे कहीं कहीं कारण उनके जनता से सीधा जुड़ाव है। मायावती ने राजनीति जिस नारे के साथ शुरू की थी, उस नारे पर आज भी वे कायम हैं। उनकी राजनैतिक दृष्टि एकदम स्पष्ट है। मुलायम सिंह ने जिस एम-वाई फैक्टर को अपना राजनैतिक आधार बनाया उससे वे डावांडोल नहीं हुए। नरेंद्र मोदी तमाम आरोपों के बीच भी विकास के नारे पर फिर चुनाव जीत जाते हैं तो उसका कारण उनके पिछले कार्यकाल के आधार पर जनता का उनमें उपजा विश्वास है। सत्ता का नशा सिर चढ़कर बोलता है और जो भी नेता इस नशे में मदमस्त हुआ, जनता के तिरस्कार का उसे सामना करना ही पड़ता है। कांग्रेस और नितीश से अच्छे उदाहरण वर्तमान समय में क्या मिलेंगे? मायावती की गलतियों की सजा जनता ने पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें दीं। शायद दिल्ली में बैठकर आजकल वे उन्हीं गलतियों को सुधारने का प्रयास कर रही हैं।
     बाल ठाकरे जैसे नेताओं का उदय और फिर सशक्त होते जाना यह दर्शाता है कि जनता सीधी-सपाट बात करने वाला और उन्हीं के जैसी बोली भाषा वाला नेता पसंद करती है, जनता चाहती है कि नेता उसका दर्द समझे और उसकी बात को बिना लाग-लपेट के आगे रखे। बाल ठाकरे के रहते ही राज ठाकरे का अपनी अलग और मजबूत राजनैतिक पहचान बनाने में सफल होना इस बात की पुष्टि करता है।
     नरेंद्र मोदी की विजय को भाजपा की सफलता के तौर पर नहीं देखा जा सकता, यह मोदी की व्यक्तिगत विजय है। देश में भाजपा की ऐसी कोई छवि नहीं बन सकी है जिससे लोग उसे वोट देने के बारे में सोचें। हिमाचल में पार्टी की पराजय इस बात का द्योतक है। यदि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी मजबूत होती तो शायद प्रेम कुमार धूमल एक बार फिर हिमाचल में सत्तासीन होते। गडकरी के नेतृत्व में भाजपा कमजोर ही दिखती है। अगले चुनाव में सफलता के लिए पार्टी को अपने नेतृत्व और राजनैतिक क्रियाकलापों में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा। उसे एक तेज तर्रार और साफ राजनैतिक दृष्टि वाले नेतृत्व की जरूरत है। यही नहीं, पार्टी को जनता के बीच अपनी उपस्थिति भी दर्ज करानी होगी।
     कांग्रेस आज अपने राजनैतिक सफर के सबसे दयनीय हालात से गुजर रही है। इमरजेंसी के दौरान जय प्रकाश नारायण के आंदोलन राजनारायण के हाथों इंदिरा की पराजय तथा बोफोर्स गोलों की दहाड़ और वी पी सिंह के मंडल जादू से राजीव गांधी की *मिस्टर क्लीन* छवि पर पड़े छींटों से भी कांग्रेस इतनी कमजोर नहीं दिखी जितनी आज है। कारण स्पष्ट है, सोनिया कांग्रेस में स्वयं को मजबूत करने के अलावा कोई करिश्मा कर नहीं पाईं और राहुल में जनता को कोई दम दिखता नही। गांधी परिवार के जादू का असर देश पर से खत्म होने को है लेकिन चापलूसों की फौज से संचालित कांग्रेस इसे स्वीकारने को तैयार नहीं। स्वीकारे भी तो कैसे जिसका पूरा जीवन ‘यस मैडम’ कहते बीता हो वह जनता के सामने जाएगा किस मुंह से और उसे जनता पहचानेगी कैसे? कांग्रेस के सामने एक मुश्किल यह भी है कि उसके पास ऐसा नेता भी तो नहीं है जो देश की कमान संभाल सके।
     कुल मिलाकर स्थितियां अत्यंत खतरनाक मोड़ पर हैं- एक तरफ यूपीए, दूसरी तरफ एनडीए, राजनैतिक लाभ के लिए खड़ा होने वाला तीसरा मोर्चा और फिर केजरीवाल का चैथा मोर्चा भी है। अगला चुनाव निश्चित तौर पर इस देश के लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण पड़ाव होगा जो देश के भविष्य की दिशा को तय करेगा। जनता को तय करना है कि वह अपना भविष्य कैसा बनाना चाहती है? चुनिएगा जरा संभलकर!
                                - बृजेश नीरज


سیاسی منظرنامہ

     آج کل کانگریس پریشان ہے، ایک طرف راہل ملک کے عوام پر جادو کی چھڑی گھمانے میں ناکام ہیں تو دوسری طرف انا، رام دیو اور كےجريوال کی تکڑی نے اس بھدد پیٹ دی ہے. سونے پر سهاگا یہ کہ نریندر مودی گجرات انتخابات پھر جیت گئے.
     کسی بھی تعصب سے گرست ہوئے بغیر اگر دیکھا جائے تو پورا معاملہ عوام سے تعلق کا ہے. آج نریندر مودی، مایاوتی، ملائم سنگھ یادو، راج ٹھاکرے جیسے لیڈر کیوں مضبوط ہوتے جا رہے ہیں، اس کے پیچھے کہیں نہ کہیں سے ان کے عوام سے براہ راست تعلق ہے. مایاوتی نے سیاست جس نعرے کے ساتھ شروع کی تھی، اس نعرے پر آج بھی قائم ہیں. ان کی سیاسی نظر بالکل واضح ہے. ملائم سنگھ نے جس ایم - وائی فیکٹر کو اپنا سیاسی بنیاد بنایا اس سے وہ ڈاواڈول نہیں ہوئے. نریندر مودی تمام الزامات کے درمیان بھی ترقی کے نعرے پر پھر انتخابات جیت جاتے ہیں تو اس کی وجہ ان کے گزشتہ مدت کی بنیاد پر عوام کا ان میں اپجا یقین ہے. اقتدار کا نشہ سر چڑھ کر بولتا ہے اور جو بھی لیڈر اس نشے میں مدمست ہوا، عوام کی حقارت کا اسے سامنا کرنا ہی پڑتا ہے. کانگریس اور نتیش سے اچھی مثال موجودہ وقت میں کیا ملیں گے؟ مایاوتی کی غلطیوں کی سزا عوام نے گزشتہ اسمبلی انتخابات میں انہیں دیں. شاید دہلی میں بیٹھ کر آج کل وہ ان غلطیوں کو درست کرنے کی کوشش کر رہی ہیں.
     بال ٹھاکرے جیسے لیڈروں کا نکلے اور پھر مضبوط ہوتے جانا یہ ظاہر کرتا ہے کہ عوام سیدھی - سپاٹ بات کرنے والا اور انہی کے جیسی بولی زبان والا لیڈر پسند کرتی ہے، عوام چاہتی ہے کہ لیڈر اس کا درد سمجھے اور اس کی بات کو بغیر لاگ - لپیٹ کے آگے رکھے. بال ٹھاکرے کے رہتے ہی راج ٹھاکرے کی اپنی الگ اور مضبوط سیاسی شناخت بنانے میں کامیاب ہونا اس بات کی تصدیق کرتا ہے.
     نریندر مودی کی فتح کو بی جے پی کی کامیابی کے طور پر نہیں دیکھا جا سکتا، یہ مودی کی ذاتی فتح ہے. ملک میں بی جے پی کی ایسی کوئی تصویر نہیں بن سکی ہے جس سے لوگ اسے ووٹ دینے کے بارے میں سوچیں. ہماچل میں پارٹی کی شکست اس بات کا ديوتك ہے. اگر قومی سطح پر پارٹی مضبوط ہوتی تو شاید محبت کمار دھومل ایک بار پھر ہماچل میں حکمراں ہوتے. گڈکری کی قیادت میں بی جے پی کمزور ہی دکھائی دیتی ہے. اگلے انتخابات میں کامیابی کے لئے پارٹی کو اپنی قیادت اور سیاسی سرگرمیوں میں امولچول تبدیلی کرنا ہوگا. اسے ایک تیز طرار اور صاف سیاسی منظر والے قیادت کی ضرورت ہے. یہی نہیں، پارٹی کو عوام کے درمیان اپنی موجودگی بھی درج کرانی ہوگی.
     کانگریس آج اپنے سیاسی سفر کے سب سے قابل رحم حالات سے گزر رہی ہے. ایمرجنسی کے دوران جے پرکاش نارائن کی تحریک اور راجناراي کے ہاتھوں اندرا کی شکست اور بوفورس گولو کی دهاڑ اور وی پی سنگھ کی منڈل جادو سے راجیو گاندھی کی * مسٹر کلین * تصویر پر پڑے چھيٹو سے بھی کانگریس اتنی کمزور نہیں دکھائی دی جتنی آج ہے. وجہ صاف ہے، سونیا کانگریس میں خود کو مضبوط کرنے کے علاوہ کوئی کرشمہ کر نہیں پائیں اور راہل میں عوام کو کوئی دم نظر نہیں. گاندھی خاندان کے جادو کا اثر ملک پر سے ختم ہونے کو ہے لیکن چاپلوسو کی فوج سے آپریشن کانگریس اسے قبول کرنے کو تیار نہیں. سويكارے بھی تو کیسے جو مکمل زندگی 'یس میڈم کہتے گزرا ہو وہ عوام کے سامنے جائے گا کس منہ سے اور اسے عوام پهچانےگي کیسے؟ کانگریس کے سامنے ایک مشکل یہ بھی ہے کہ اس کے پاس ایسا لیڈر بھی تو نہیں ہے جو ملک کی کمان سنبھال سکے.
     مجموعی طور پر حالات انتہائی خطرناک موڑ پر ہیں - ایک طرف یو پی اے، دوسری طرف این ڈی اے، سیاسی فائدہ کے لئے کھڑا ہونے والا تیسرا محاذ اور پھر كےجريوال کا چےتھا محاذ بھی ہے. اگلا، دوسرا انتخابات یقینی طور پر اس ملک کے جمہوریت کے لئے اہم منزل ہے جو ملک کے مستقبل کی سمت کو طے کرے گا. عوام کو طے کرنا ہے کہ وہ اپنا مستقبل کیسا بنانا چاہتی ہے؟ چنےگا ذرا سنبھل کر!
                       - برجےش نیرج

No comments:

Post a Comment

कृपया ध्यान दें

इस ब्लाग पर प्रकाशित किसी भी रचना का रचनाकार/ ब्लागर की अनुमति के बिना पुनः प्रकाशन, नकल करना अथवा किसी भी अन्य प्रकार का दुरूपयोग प्रतिबंधित है।

ब्लागर