Friday 14 December 2012

रचना - माहौल




रात काली पथ अंधेरा
राह चलते लगता है डर।

तुम अकेले मैं अकेला
साथ चलते लगता है डर।

सोचता हूं साथ हो लें
दिल मिलाते लगता है डर।

हो चला है चलन ऐसा
आदमी से लगता है डर।

                                - बृजेश नीरज


No comments:

Post a Comment

कृपया ध्यान दें

इस ब्लाग पर प्रकाशित किसी भी रचना का रचनाकार/ ब्लागर की अनुमति के बिना पुनः प्रकाशन, नकल करना अथवा किसी भी अन्य प्रकार का दुरूपयोग प्रतिबंधित है।

ब्लागर