हमारे लखनऊ के एक मित्र बृजेश नीरज जी, जो अपनी पत्रिका 'शब्द व्यंजना' एवं 'संवेदन' संस्था के माध्यम
से हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं रचनाकारों के प्रोत्साहन के लिए सतत कार्यशील हैं ....अभी
हाल ही में उनका एक काव्य संग्रह 'कोहरा
सूरज धूप' मेरे
हाथ में आया .... इतनी सुन्दर कविताएँ कि समझ नहीं आया उनकी कौन सी कविता आपके
सामने पोस्ट करूँ .....सघन भाव और उत्तम शिल्प का एक उदाहरण है उनका ये संग्रह ........प्रस्तुत
है उनकी इस पुस्तक से उद्दृत एक नायाब कविता .... उनके सुखद और उज्वल भविष्य के
हार्दिक मंगलकामना के साथ ......
'क्रंदन'
बच्चा रो रहा है
हवा में तैरता
क्रंदन
चाँदनी
आँगन में उतर आयी
तमाशा देखने
कनस्तर
मुँह बाए पड़ा है
कोने में
बटुली बुदबुदा कर
चुप हो गई
चूल्हा बार-बार
एक ही बात पूछ्ता है -
कौन है वो
जो खा गया
इसके हिस्से की रोटी?
पूरा गाँव खामोश है
पीपल के पत्ते
अफ़सोस में सर हिला रहे हैं
(बृजेश नीरज)
टिप्पणीकार
संध्या सिंह
लखनऊ
पुस्तक बिक्री के लिए उपलब्ध है-
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