Friday, 29 August 2014

जलेस द्वारा आयोजित लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम

24 अगस्त 2014 को कैफ़ी आज़मी सभागार, निशातगंज, लखनऊ में जनवादी लेखक संघ की लखनऊ इकाई के तत्वाधान में वरिष्ठ लेखक एवं संपादक डॉ गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता एवं डॉ संध्या सिंह के कुशल सञ्चालन में कवि बृजेश नीरज की काव्यकृति कोहरा सूरज धूपएवं युवा कवि राहुल देव के कविता संग्रह उधेड़बुनका लोकार्पण एवं दोनों कृतियों पर परिचर्चा का कार्यक्रम आयोजित किया गया।

कार्यक्रम में सर्वप्रथम प्रख्यात समाजवादी लेखक डॉ यू.आर. अनंतमूर्ति को उनके निधन पर दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गयी। मंचासीन अतिथियों में कवि एवं आलोचक डॉ अनिल त्रिपाठी, जलेस अध्यक्ष डा अली बाकर जैदी, लेखक चंद्रेश्वर, युवा आलोचक अजित प्रियदर्शी ने कार्यक्रम में दोनों कवियों की कविताओं पर अपने-अपने विचार व्यक्त किए। परिचर्चा में सर्वप्रथम कवयित्री सुशीला पुरी ने क्रमशः बृजेश नीरज एवं राहुल देव के जीवन परिचय एवं रचनायात्रा पर प्रकाश डाला। तत्पश्चात राहुल देव ने अपने काव्यपाठ में भ्रष्टाचारम उवाच’, ‘अक्स में मैं और मेरा शहर’, ‘हारा हुआ आदमी’, ‘नशा’, ‘मेरे सृजक तू बताशीर्षक कविताओं का वाचन किया। बृजेश नीरज ने अपने काव्यपाठ में तीन शब्द’, ‘क्या लिखूं’, ‘चेहरा’, ‘दीवारकविताओं का पाठ किया।


परिचर्चा में युवा आलोचक अजित प्रियदर्शी ने राहुल देव की कविताओं पर अपनी बात रखते हुए कहा कि इनकी कविताओं में प्रश्नों की व्यापकता की अनुभूति होती है। यही प्रश्न उनकी उधेड़बुन को प्रकट करते हैं। राहुल अपनी छोटी कविताओं में अधिक सशक्त हैं। राहुल अपनी कविताओं में जीवन को जीने का प्रयास करते हैं। डॉ अनिल त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में सर्वप्रथम श्री बृजेश नीरज की रचनाधर्मिता पर अपने विचार प्रकट किए- बृजेश नीरज की कृति समकालीन कविता के दौर की विशिष्ट उपलब्धि है। उनकी कविताओं में लय, कहन, लेखन की शैली दृष्टिगोचर होती है। वे अपना मुहावरा स्वयं गढ़ते हैं। इस काव्य संग्रह का आना इत्तेफ़ाक हो सकता है किन्तु अब यह समकालीन हिंदी कविता की आवश्यकता है। राहुल की छोटी कविताएँ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। समीक्षक चंद्रेश्वर ने कहा कि राहुल देव की कविताओं में तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग खटकता है। राहुल ने अपनी कविताओं में शब्दों को अधिक खर्च किया है, उन्हें इतना उदार नहीं होना चाहिए। कहीं-कहीं पर अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग हिंदी साहित्य में भाषा की विडंबना को परिलक्षित करता है। बृजेश नीरज संक्षिप्तता के कवि हैं, प्रभावशाली हैं। अपनी पत्नी के नाम को अपने नाम के साथ जोड़कर उन्होंने एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनकी रचनाधर्मिता सराहनीय है।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव ने कार्यक्रम संयोजक डॉ नलिन रंजन सिंह को साधुवाद देते हुए कहा कि जब मानवीय संवेदनाएं सूखती जा रही हैं ऐसे समय में ऐसी सार्थक बहस का आयोजन एक ऐतिहासिक क्षण है जिसमें श्री नरेश सक्सेना और श्री विनोद दास जैसे गणमान्य साहित्यकार भी उपस्थित हों। राहुल की कृति उधेड़बुनएक युवा कवि के अंतस का प्रतिबिम्ब है। एक छटपटाहट लिए यह संग्रह एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यह समाज के बनावटी जीवन को उद्घाटित करता है। उधेड़बुनरोमांटिक प्रोटेस्ट का कविता संग्रह है। बृजेश नीरज की कृति कोहरा, सूरज, धूपमें गंभीरता है। यह एक ऐसे सत्य की खोज़ है जिसमें जीवन के उच्चतर आदर्शों की उद्दामता है, मानवतावाद का बोध कराने की सामर्थ्य है। आज के सन्दर्भों में यह दोनों कृतियाँ महत्त्वपूर्ण और पठनीय हैं।


अंत में धन्यवाद ज्ञापन डा अली बाकर जैदी ने किया। कार्यक्रम में नरेश सक्सेना, संध्या सिंह, किरण सिंह, दिव्या शुक्ला, विजय पुष्पम पाठक, डॉ कैलाश निगम, एस.सी. ब्रह्मचारी, रामशंकर वर्मा, कौशल किशोर, अनीता श्रीवास्तव, नसीम साकेती, प्रताप दीक्षित, भगवान स्वरुप कटियार, एस के मेहँदी, डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव, प्रदीप सिंह कुशवाहा, हेमंत कुमार, मनोज शुक्ल, केवल प्रसाद सत्यम, धीरज मिश्र, हफीज किदवई, सूरज सिंह सहित कई अन्य गणमान्य व्यक्ति एवं साहित्यकार उपस्थित रहे।

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