भाषा- मानव-समाज के लिए भाषा बहुत महत्वपूर्ण तत्व है। इसके माध्यम से ही मनुष्य
विचारों और भावों का आदान-प्रदान करता है। भाषा संप्रेषण का मुख्य साधन होती है।
वैसे तो संप्रेषण संकेतों के माध्यम से भी हो सकता है लेकिन सांकेतिक
क्रिया-कलापों को भाषा नहीं माना जा सकता।
‘भाषा’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की ‘भाष्’ धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है- बोलना, कहना। भाषा हमने बोलकर पाई है, बाद में इसे लिपिबद्ध किया गया।
भावों और विचारों की
अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त ध्वनि संकेतों की व्यवस्था ‘भाषा’ कहलाती है। इन ध्वनियों के प्रतिनिधि स्वन एक निश्चित व्यवस्था में मिलकर भाषा
का निर्माण करते हैं। इस प्रकार, भाषा व्यक्त नाद की वह समष्टि है जिसके द्वारा किसी
समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार प्रकट करते हैं।
संसार में अनेक भाषाएँ
बोली जाती हैं, जैसे- हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, बँगला, उर्दू, रोमन, तेलुगु, फ्रैंच, चीनी, जर्मन इत्यादि। भारत के संविधान में २२ भाषाओं को मान्यता
प्रदान की गयी है- असमिया, ओड़िया, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, गुजराती, डोगरी,
तमिल, तेलुगु, नेपाली, पंजाबी, बंगला, बोडो, मणिपुरी, मलयालम, मैथिली, संथाली,
संस्कृत, सिन्धी, मराठी, हिंदी।
हिंदी भाषा का
क्षेत्र आज बहुत व्यापक हो गया है। विश्व के १५० से भी अधिक विश्वविद्यालयों में
यह भाषा पढ़ाई जाती है।
भाषा के रूप- भाषा दो रूपों में प्रयुक्त होती है- मौखिक और लिखित। ‘मौखिक भाषा’ ही भाषा का मूल रूप है। मनोभावों को बोलकर प्रकट करते समय
भाषा के मौखिक रूप का प्रयोग किया जाता है जबकि पत्र, लेख आदि के द्वारा अपने भाव या विचार प्रकट करते समय भाषा के लिखित रूप का प्रयोग
होता है।
मातृभाषा- जन्म से हम जिस भाषा को बोलते-समझते हैं, वह मातृभाषा
कहलाती है। इस भाषा को बालक अपने परिवार से सीखता है।
राष्ट्रभाषा- किसी देश के अधिकांश नागरिकों द्वारा जिस भाषा का प्रयोग
किया जाता है, वह राष्ट्रभाषा कहलाती है।
राजभाषा- किसी देश के सरकारी काम-काज में जो भाषा प्रयुक्त होती है,
उसे राजभाषा कहा जाता है। १४ सितम्बर, १९४९ को भारत के संविधान में हिंदी को
राजभाषा के रूप में मान्यता दी गई लेकिन अंग्रेजी को सह-राजभाषा के रूप में जारी
रखा गया।
बोली- भाषा का एक सीमित क्षेत्र मेँ बोला जाने वाला रूप बोली कहलाता
है। बोली एक बड़े भू-भाग में प्रयुक्त होने वाली भाषा का क्षेत्रीय तथा अर्ध विकसित
रूप है। कई बोलियों की समान बातें मिलकर भाषा बनाती हैं। आमतौर पर ‘बोली’ का संबंध बोलने तक सीमित रहता है और इसमें लिखित साहित्य नहीं होता। कई बार
बोली विकसित होकर लोक-गीत, लोक-कथा आदि रूपों में भी सामने आती है। हिंदी भाषा की
१८ बोलियाँ प्रचलित हैं। पहले ब्रज, अवधी, मैथिली बोलियाँ ही थीं जो आज विकसित
होकर भाषाएँ बन गई हैं।
लिपि- भाव व्यक्तीकरण के दो अभिन्न पहलू हैं- भाषा और लिपि। वर्णों
का उच्चारण ध्वनियों से होता है। इन मौखिक ध्वनियों को जिन निश्चित चिन्हों के माध्यम
से लिखा जाता है, उसे लिपि कहते हैं। लिपि भाषा को लिखने की रीति है। अंग्रेजी
भाषा की लिपि रोमन और उर्दू भाषा की लिपि फारसी है। एक भाषा कई लिपियों में लिखी
जा सकती है जबकि दो या अधिक भाषाओं को एक ही लिपि में लिखा जा सकता है।
उदाहरणार्थ- पंजाबी भाषा गुरूमुखी तथा शाहमुखी दोनों लिपियों में लिखी जाती है जबकि
हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली इत्यादि देवनागरी लिपि में ही लिखी जाती हैं।
व्याकरण- व्याकरण वह शास्त्र है जो भाषा के शुद्ध रूप का ज्ञान कराता
है। यह नियमबद्ध योजना है जो भाषा के स्वरुप का निर्धारण करती है। व्याकरण के द्वारा
शब्दों के शुद्ध स्वरुप व उच्चारण, शब्द-प्रयोग, वाक्य-गठन आदि का निर्धारण किया जाता है।
व्याकरण के अंग- व्याकरण के चार अंग निर्धारित किये गये हैं-
1. वर्ण-विचार- इसमें वर्ण-आकार, उच्चारण, भेद और मिलान की विधि बताई जाती है।
2. शब्द-विचार- इसमें शब्द-रूप, भेद, व्युत्पति आदि का वर्णन किया जाता है।
3. पद-विचार- इसमें पद तथा उसके भेदों का अध्ययन किया जाता है।
4. वाक्य-विचार- इसमें वाक्य-भेद, वाक्य बनाने की विधि तथा विराम-चिह्नों का वर्णन होता है।
- बृजेश नीरज
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