दिनांक २६.१०.२०१३
ओबीओ लखनऊ चैप्टर के लिए बहुत ही सुनहरे, खूबसूरत और सुखद क्षण लेकर आया, जब आल
इंडिया कैफ़ी आज़मी अकादमी के प्रेक्षागृह में बड़ी संख्या में देश-विदेश के
जाने-अनजाने रचनाकार काव्य गोष्ठी में शिरकत करने के लिए एकत्रित हुए.
इस काव्य गोष्ठी
की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि श्री राम देव लाल ‘विभोर’ ने की जबकि मुख्य अतिथि ओबीओ के संस्थापक इ. गणेश जी ‘बागी’ थे. विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रसिद्ध नवगीतकार श्री मधुकर अस्थाना और श्री
कैलाश निगम, उ.प्र. हिंदी संस्थान की प्रकाशन अधिकारी डॉ. अमिता दुबे तथा ओबीओ
प्रबंधन सदस्य श्री सौरभ पाण्डेय उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन ओबीओ प्रबंधन
सदस्य श्री राना प्रताप सिंह ने किया.
माँ सरस्वती की
प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ. हल्द्वानी से
पधारी ओबीओ प्रबंधन सदस्या डॉ. प्राची सिंह ने अपनी सुमधुर वाणी में सरस्वती वंदना
प्रस्तुत की.
रचना पाठ की
शुरुआत लखनऊ के युवा रचनाकार श्री धीरज मिश्र ने की. सनातनी छंदों पर इनकी बहुत
अच्छी पकड़ है और ये इस अवसर पर उनके द्वारा प्रस्तुत रचनाओं से परिलक्षित भी हुआ. उन्होंने
श्रृंगार के छंद और मुक्तक सुनाये-
‘प्रेम से
सना हुआ है प्रेम का निवेदन ये,
प्रेम है पवित्र मेरा कैसे ठुकराओगी
आज भी तुम्हारे
इंतज़ार में खड़ा हूँ प्रिये,
मान जाओ अन्यथा बहुत पछताओगी’
नवगीत के क्षेत्र
में श्री अमन दलाल एक उभरता हुआ नाम है. उनकी प्रस्तुति ने ऐसा समां बांधा कि लोग
रसधार में बस बहते चले गए-
‘उस पार के
सपन को इस पार नहीं सोचा
हमने तुम बिन ओ
प्रियतम संसार नहीं सोचा’
कानपुर निवासी
श्रीमती अन्नपूर्णा बाजपेयी ओबीओ लखनऊ चैप्टर के हर कार्यक्रम में जिस सक्रियता से
प्रतिभाग करती हैं, वो अत्यंत प्रशंसनीय है-
‘गगन में
निरे भरे सितारे
इस आँगन में आज
सितारे’
इंदौर से पधारी
ओबीओ सदस्या सुश्री गीतिका ‘वेदिका’ की न केवल
लेखन शैली विशिष्ट है बल्कि उनकी प्रस्तुति भी विशिष्ट होती है. उनकी रचना की
पंक्तियाँ कुछ यूँ थीं-
‘रहो सलामत
रहो जहाँ भी, कहीं रहे हम दुआ करेंगे
जो टूट जायेगी
साँस अपनी, कि मरते दम तक वफ़ा करेंगे’
कानपुर से पधारे ओबीओ
के सदस्य श्री प्रदीप शुक्ल स्वयं को लेखन में नया ही मानते हैं परन्तु उनके लेखन
में परिपक्वता बरबस झलकती है-
‘देखो मेरा
स्वार्थ निजी, कुछ पाने की इच्छा लाया
भूख लगी जब हृदय
उदर, तब बालक माता तक आया’
हास्य व्यंग्य के
कवि श्री गोबर गणेश अपनी विशिष्ट शैली के कारण एक अलग पहचान रखते हैं-
‘आजकल फाइल
तब चल रही है
जब लक्ष्मी मार्क
का पहिया लग रहा है’
ओबीओ लखनऊ चैप्टर
के सक्रिय सहयोगी केवल प्रसाद ‘सत्यम’ की लेखन
में अपनी एक विशिष्ट पहचान है, और ये बात उनकी प्रस्तुति में स्पष्ट परिलक्षित
हुई-
‘तन श्वेत
सुवस्त्र सजे संवरे,
शिख केश सुगंध सुतैल लसे
कटी भाल सुचंदन
लेप रहे,
रज केसर मस्तक भान हँसे
कर कर्म कुकर्म
करे निष् में,
दिन में अबला पर शान कसे
नित धर्म सुग्रंथ
रचे तप से,
मन से अति नीच सुयोग डँसे’
‘मीत मन में
बीज गहरे वेदना के बो गए
अश्रु आँखों से
सुनहरे स्वप्न सारे धो गए
इक शिखा की लपट पर
मिटकर शलभ ने ये कहा
तुम हमारे हो न
पाए, हम तुम्हारे हो गए’
दिल्ली से पधारी
सुश्री महिमा श्री सामाजिक सरोकारों और विशेष तौर पर नारी विषयों को अपने लेखन में
स्थान देती हैं-
‘सपनों को
होने से होने का एहसास होता है’
श्री राहुल देव इस
भौतिकतावादी युग की विसंगतियों को बखूबी शब्द दे लेते हैं-
‘गुलामी अब
अभिशाप नहीं आकाश है
जहाँ आज़ादी हफ्ते
का अवकाश है’
श्रीमती कुंती
मुखर्जी की अतुकांत रचनायें सुनने वालों के मन को छू जाती हैं-
‘रात के
अंतिम प्रहार में कभी-कभी
निस्तब्ध तारों के
बीच से
एक वाचाल निमंत्रण
आता है’
ओबीओ लखनऊ चैप्टर
के आयोजन में पहली बार पधारे श्री शैलेन्द्र सिंह ‘मृदु’ की लेखनी से रूबरू होने का अवसर हम सबको प्राप्त हुआ-
‘दिल का
पैगाम लेके आया हूँ
नेह का जाम लेके
आया हूँ
सूने आँगन में आके
बस जाओ
वृदावन धाम लेके
आया हूँ’
बृजेश नीरज यानी
मैंने अपना एक गीत प्रस्तुत किया-
‘दीप हमने
सजाये घर-द्वार हैं
फिर भी संचित
अँधेरा होता रहा’
ओबीओ प्रबंधन
सदस्य श्री राना प्रताप सिंह के कलम का जादू श्रोताओं के सिर चढ़कर बोला-
‘कुहनी तक
देखो कुम्हार के फिर से हाथ सने
फिर से चढ़ी चाक पर
मिट्टी फिर से दीप बने’
श्री प्रदीप कुमार
सिंह कुशवाहा की अपनी एक अलग ही शैली है-
‘जो
अनुभूतियाँ
कभी हम जीते थे
अब उन्हीं के
स्मृति कलश सजाकर
प्रतीक रूप में
चुन-चुनकर
नित दिवस मनाते
हैं’
ओबीओ लखनऊ चैप्टर
के सक्रिय सदस्य श्री आदित्य चतुर्वेदी हास्य-व्यंग्य में बहुत अच्छी दखल रखते
हैं-
‘वे
भिखारियों के विरुद्ध
नया अध्यादेश ला
रहे
लगता है कि
एक-दूजे को
बर्दाश्त नहीं कर पा रहे’
छत्तीसगढ़ से पधारे
ओबीओ कार्यकारिणी सदस्य श्री अरुण निगम छंदों में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं-
‘सोना,
चावल, चिट्ठियाँ जितने हों प्राचीन
उतने होते कीमती
और लगे नमकीन’
डॉ. सुशील अवस्थी
ने कविता और उसकी विभिन्न विधाओं की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए अपनी छोटी-छोटी
कई रचनायें प्रस्तुत की. उनकी एक रचना के बोल इस प्रकार थे-
‘आज
गद्दीनशीन हैं साहेब
कालि कउड़ी के तीन
हैं साहेब’
श्री के.के.सिंह ‘मयंक’ की प्रस्तुति इतनी आकर्षक थी की बस सब वाह-वाह कर उठे-
‘तासुब्ब के
अँधेरों को मिटायें तो उजाला हो
कोई दीपक मुहब्बत
का जलायें तो उजाला हो
ये कैसी शर्त रख
दी है चमन के बागबानों ने
कि हम खुद आशियाँ
अपना जलायें तो उजाला हो’
कनाडा से पधारे
प्रो. सरन घई को भी सुनने का अवसर हम सबको प्राप्त हुआ-
‘शादी से
पहले हमको कहते थे सब आवारा
शादी हुई तो वो ही
कहने लगे बेचारा
कुछ हाल यों हुआ
है शादी के बाद मेरा
जैसे गिरा फलक से
टूटा हुआ सितारा’
डॉ. शरदिंदु
मुखर्जी जितने योग्य और विद्वान् हैं उतने ही सरल भी. ये उनका व्यक्तित्व ही है कि
वे कह पाते हैं-
‘सागर का
उल्लास कैसा’
डॉ. सूर्य बाली ‘सूरज’ की आयोजन में उपस्थिति हम सबके लिए एक उपलब्धि थी-
‘वो मेरा
दोस्त है दुश्मन है न जाने क्या है
वो मेरी मीत है
धड़कन है न जाने क्या है
क्यूँ जुदा होक भी
हर वक्त उसी को सोचूँ
ये रिहाई है कि
बंधन है न जाने क्या है’
ओबीओ प्रबंधन की
सदस्या डॉ. प्राची सिंह की लेखनी उनके ज्ञान और साहित्य के प्रति उनके अनुराग व
समर्पण का उदाहरण है-
‘आँख मिचौली
खेलता, मुझसे मेरा मीत
अंतर्मन के तार
पर, गाये मद्धम गीत’
डॉ. अमिता दुबे की
कलम का जादू कुछ यूँ देखने को मिला-
‘बनाया था
आशियाना अभी कल की बात है
सजाया था शामियाना
अभी कल की बात है
कभी खिलते थे फूल
गूँजती थी किलकारियाँ
घर में नहीं था
वीराना अभी कल की बात है’
श्री सौरभ पाण्डेय
की कलम में वो जादू है जो विरले लोगों को ही नसीब होता है. एक बानगी देखिये-
‘क्या हुआ,
शाम से आज बिजली नहीं
दोपहर से दिखे टैप
बिसुखा इधर
सूख बर्तन रहे हैं
न माँजे हुए
जान खाती दिवाली
अलग से, मगर
पर्व तो पर्व है
आज कुछ हो अलग
आँज लें नैन...
सपने सिकोड़े हुए’
श्री कैलाश निगम
नवगीतकारों में एक प्रमुख स्थान रखते हैं. उनके गीतों को सुनना एक अनूठी अनुभूति
देता है-
‘ये समय है
कि सुनहरे पृष्ठ अपने खोल
कृष्ण की गीता
तथागत के सुना फिर बोल
प्रेम, समता,
न्याय की पावन त्रिवेणी का
एक अमृत-तत्व हर
धमनी-शिरा में घोल’
श्री मधुकर
अस्थाना जितने बड़े नवगीतकार हैं, उतने ही बड़े छंदकार भी. उनकी लेखनी का जादू
श्रोताओं को मुग्ध कर देता है-
‘जिंदगी का
भी ज़िन्दगी होना
राशनी का भी रौशनी
होना
इस जमाने में कहाँ
मुमकिन है
आदमी का भी आदमी
होना’
ओबीओ के
संस्थापक-प्रबंधक और कार्यक्रम के मुख्य
अतिथि श्री गणेश जी बागी भोजपुरी साहित्य के एक प्रमुख हस्ताक्षर तो हैं ही, हिंदी
साहित्य की भी हर विधा पर इनकी पकड़ बेमिसाल है-
'बार-बार लात खाए,
फिर भी ना बाज़ आये
बेहया पड़ोसी कैसा
देखो पाकिस्तान है
लड़ ले एलान कर, रख
देंगे फाड़ कर
ध्यान रहे बाप
तेरा यही हिन्दुस्तान है’
कार्यक्रम के अध्यक्ष
श्री राम देव लाल ‘विभोर’ जितने बड़े
छंदकार हैं उतने ही बड़े शायर भी-
‘हार-जीत
बैरी नहीं, ये आपस में यार
तभी विजेता जीतकर
गले लगाता हार’
इन सब के बीच श्री
शुभ्रांशु पाण्डेय ने अपनी व्यंग्यात्मक गद्य रचना का पाठ किया जिसे श्रोताओं ने
बहुत सराहा.
रचना पाठ करने वालों की संख्या इतनी अधिक थी कि एक रचना पढ़ने के प्रतिबन्ध के बावजूद शाम ५.०० बजे से प्रारम्भ हुआ क्रम आखिर रात १०.०० बजे जाकर थमा. डॉ. नलिनी खन्ना, श्री ए.के. दास, श्री एस.सी. ब्रह्मचारी, श्री अनिल ‘अनाड़ी’, सुश्री पूनम, श्री राज किशोर त्रिवेदी आदि ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया परन्तु स्थानाभाव के कारण सबको स्थान दे पाना संभव नहीं हो पा रहा है. इस क्रम में कुछ रचनाकार जो विलम्ब से पहुँचे उन्हें रचना पाठ के अवसर से वंचित भी होना पड़ा.
रचना पाठ करने वालों की संख्या इतनी अधिक थी कि एक रचना पढ़ने के प्रतिबन्ध के बावजूद शाम ५.०० बजे से प्रारम्भ हुआ क्रम आखिर रात १०.०० बजे जाकर थमा. डॉ. नलिनी खन्ना, श्री ए.के. दास, श्री एस.सी. ब्रह्मचारी, श्री अनिल ‘अनाड़ी’, सुश्री पूनम, श्री राज किशोर त्रिवेदी आदि ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया परन्तु स्थानाभाव के कारण सबको स्थान दे पाना संभव नहीं हो पा रहा है. इस क्रम में कुछ रचनाकार जो विलम्ब से पहुँचे उन्हें रचना पाठ के अवसर से वंचित भी होना पड़ा.
ओबीओ लखनऊ चैप्टर
सभी आगुन्तकों का आभारी है जिन्होंने निमंत्रण को स्वीकार कर इस आयोजन की शोभा
बढ़ाई.
-
बृजेश नीरज
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