आए कन्हाई।
नंद घर बाजे
बधाई।।
रात अँधेरी
मन में गहरी,
प्रलय बनी थी
भ्रम की बदरी
तब यमुना भी
उफनाई।
नंद घर बाजे
बधाई।।
पतझड़ सा हर
गली बसा था,
डार डार से
पात झड़ा था
अब एक कली
मुस्काई।
नंद घर बाजे
बधाई।।
रूप-रंग बस
एक भुलावा,
जीवन ढोता
एक छलावा
प्रभु ने अब
रास रचाई।
नंद घर बाजे
बधाई।।
मोह-दंभ की
बेड़ी टूटी,
नव आशा की
किरनें फूटी
पलना झूलें कन्हाई।
नंद घर बाजे बधाई।।
-
बृजेश
नीरज
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