Friday, 17 May 2013

मधु का प्याला



सुन्दरी सवैया = सगण X 8 + गुरु 


हमरे मन तौ पिय आन बसे
मन वास करे उनके मधुशाला
हम बांट निहारत हौं जिनकी
उन नैन बसा मधु का यह प्याला
कइसे मनुहार करौं सजना
विष पान समान तजो यह हाला
टिकुरी अस माथ सुहात रहे
नहि साथ छुटे तजि दो मधुशाला

इक बार जबै यह देह चढ़ी
चढ़िकै सिर बोलत है यह प्याला
मन राग विराग से बेसुध सा
इक रंग चढ़ा बस ये मधुशाला
घर बार गया सब मान गया
तबहूं नहिं छूटत है यह हाला
कछु भूख पियास याद रही
जस याद रहा मधु का यह प्याला
                   - बृजेश नीरज

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