सुन्दरी सवैया = सगण X 8 + गुरु
हम बांट निहारत हौं जिनकी,
उन नैन बसा मधु का यह प्याला ।
कइसे मनुहार करौं सजना,
विष पान समान तजो यह हाला ।
टिकुरी अस माथ सुहात रहे,
नहि साथ छुटे तजि दो मधुशाला ।
इक बार जबै यह देह चढ़ी,
चढ़िकै सिर बोलत है यह प्याला ।
मन राग विराग से बेसुध सा,
इक रंग चढ़ा बस ये मधुशाला ।
घर बार गया सब मान गया,
तबहूं नहिं छूटत है यह हाला ।
कछु भूख पियास न याद रही,
जस याद रहा मधु का यह प्याला ।
- बृजेश नीरज
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