ओपन बुक्स ऑनलाइन, चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक-२५ में मेरी रचना
(चित्र
ओबीओ से साभार)
भरती खातिर
आये लल्ला,
सीना झट से दिया फुलाय ।
सीना झट से दिया फुलाय
नाप सको तो
नापो सीना,
पसली पसली दिया दिखाय ।।
पसली पसली दिया दिखाय
पेट पीठ सब
एक हो गयी,
दम ऐसा कुछ दिया लगाय ।
दम ऐसा कुछ दिया लगाय
प्रत्यंचा सी
देह तन गयी,
तन कुछ ऐसा दिया लचाय ।।
तन कुछ ऐसा दिया लचाय
गर्दन अकड़ी
सीना फूला,
पाछे हाथ दिया फैलाय ।
पाछे हाथ दिया फैलाय
सूरत जैसे आम
चुसा हो,
अँखिया भीतर कोटर नाय ।।
अँखिया भीतर कोटर नाय
सरपट झटपट दौड़ेगा
वो,
क्या दौड़े सब पेट फुलाय ।
क्या दौड़े सब पेट फुलाय
दुर्बल इसको
समझ रहे जो,
थुलथुल काया नहीं सुहाय ।।
थुलथुल काया नहीं सुहाय
- बृजेश नीरज
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