Friday 26 April 2013

वीर छंद

ओपन बुक्स ऑनलाइन, चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक-२५ में मेरी रचना


(चित्र ओबीओ से साभार)

भरती खातिर आये लल्ला, 
सीना झट से दिया फुलाय
नाप सको तो नापो सीना, 
पसली पसली दिया दिखाय

पेट पीठ सब एक हो गयी, 
दम ऐसा कुछ दिया लगाय
प्रत्यंचा सी देह तन गयी, 
तन कुछ ऐसा दिया लचाय

गर्दन अकड़ी सीना फूला, 
पाछे हाथ दिया फैलाय
सूरत जैसे आम चुसा हो, 
अँखिया भीतर कोटर नाय

सरपट झटपट दौड़ेगा वो,
क्या दौड़े सब पेट फुलाय
दुर्बल इसको समझ रहे जो, 
थुलथुल काया नहीं सुहाय
                        - बृजेश नीरज  


No comments:

Post a Comment

कृपया ध्यान दें

इस ब्लाग पर प्रकाशित किसी भी रचना का रचनाकार/ ब्लागर की अनुमति के बिना पुनः प्रकाशन, नकल करना अथवा किसी भी अन्य प्रकार का दुरूपयोग प्रतिबंधित है।

ब्लागर