Thursday 28 March 2013

गज़ल/ अनजान रहा अक्सर


दीदार का बस तेरे अरमान रहा अक्सर
इस प्यार से तू मेरे अनजान रहा अक्सर

बाजार में दुनिया के हर चीज तो मिलती है
तेरे हबीबों में भी धनवान रहा अक्सर

जिस वक्त दुनिया में था घनघोर कहर बरपा
उस वक्त भी रौशन ये श्मशान रहा अक्सर

हर ओर इन गलियों में इक शोर सा मचता है
हाकिम का ही तो यह भी एहसान रहा अक्सर

मेरी मुरादों ने अपना रूप बदल डाला
ईमान के चक्कर में नुकसान रहा अक्सर
               -        बृजेश नीरज

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच-1198 पर भी होगी!
    सूचनार्थ...सादर!
    --
    होली तो अब हो ली...! लेकिन शुभकामनाएँ तो बनती ही हैं।
    इसलिए होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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    1. गुरूदेव आपका आभार! होली की आपको भी हार्दिक शुभकामनायें!

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  2. बढ़िया प्रस्तुति

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  3. खूबसूरत रचना

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