दीदार का बस
तेरे अरमान रहा
अक्सर
इस प्यार से
तू मेरे अनजान
रहा अक्सर
बाजार में दुनिया के हर चीज
तो मिलती है
तेरे हबीबों में भी
धनवान रहा अक्सर
जिस वक्त दुनिया में था घनघोर
कहर बरपा
उस वक्त भी
रौशन ये श्मशान रहा अक्सर
हर ओर इन
गलियों में इक
शोर सा मचता
है
हाकिम का ही
तो यह भी
एहसान रहा अक्सर
मेरी मुरादों ने अपना
रूप बदल डाला
ईमान के चक्कर
में नुकसान रहा अक्सर
-
बृजेश नीरज
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच-1198 पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर!
--
होली तो अब हो ली...! लेकिन शुभकामनाएँ तो बनती ही हैं।
इसलिए होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
गुरूदेव आपका आभार! होली की आपको भी हार्दिक शुभकामनायें!
Deleteबढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteआपका आभार!
Deleteखूबसूरत रचना
ReplyDelete
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति है ब्रिजेश जी
latest post हिन्दू आराध्यों की आलोचना
latest post धर्म क्या है ?
आपका आभार!
Deletebahut achchhi lagi gazal..
ReplyDelete