Tuesday 29 January 2013

बुढ़ापा


तस्वीर कुछ बदरंग सी दिखने लगी है
या चेहरा ही कुछ बेढंगा लगने लगा है

जरिया कोई हो तो सूरत बदल ली जाए
यह बड़ा सा धब्बा अब खलने लगा है

झुर्रियों से उजागर हैं वक्त की कारीगरी
आंखों का स्याहपन अब झलकने लगा है

कदम उठते नहीं जो चलते थे जोर से
उम्र का पहिया अब यहीं थमने लगा है

आजमाइश करनी हो तो कर लीजिए
जोर बाजुओं का कमजोर पड़ने लगा है

पिंजरे में बंद था उम्र भर से जो सुआ
आजकल वो पंख अपने तौलने लगा है

यहां आकर सब जान जाएंगे यह बात
इस गांव का कुंआ अब सूखने लगा है
                   - बृजेश नीरज





4 comments:

  1. बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई

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    1. मदन भाई धन्यवाद!

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  2. यथार्थ तस्वीर पेश की है आपने!
    बहुत सुन्दर.
    बधाई!

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  3. बहुत खूब बृजेश जी

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