दुश्वारियां बढ़ती रहीं
फासलों के साथ
नफरत पनपती रही
जहां प्यार होता
था
कुछ नहीं बदला
तेरे जाने के
बाद भी
बस टीस होती
है जहां दिल
धड़कता था
कुछ बदले हुए
से वो नज़र
आते हैं अब
रूतबा झलकता है
जो अंदाज होता
था
इन कुहासों में मायूस
सा है ये
समां
बदली छायी है
जहां आफताब होता
था
इस माहौल में
जीने का हुनर
सीखिए
व्यापार होता है
जहां व्यवहार होता था
- बृजेश नीरज
ReplyDeleteImpressive. Good one.
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