ये जिंदगी
राख से बेहतर
तो नहीं
न जाने क्या
क्या राख
बस राख ही
राख।
अभी भी कहीं
नीचे
शोले हैं कुछ
दबे हुए
दहकते रहते हैं
सुलगते रहते हैं
जब तब।
कोशिश है कि
पांव न पड़ें
इन शोलों पर।
फिर भी एकाध
आ ही जाते
हैं
पांव के नीचे
खुद ब खुद
जरा सी चूक
में।
फिर भी
हर हाल में
जिंदगी को बचाना
है
राख होने से
खाक होने से
कोशिश जारी है।
-
बृजेश नीरज

बहुत सुन्दर
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