शहर में
एक चित्रकला प्रदर्शनी
थी
कुछ मार्डन आर्ट
की पेंटिंग्स लगी
थीं
मैंने देखा उन्हें
गौर से
बार-बार
इधर से उधर
से
कुछ समझ न
आया
और लोग भी
आ रहे थे
गौर से देखते
थे
उन पेंटिंग्स को
सुन्दर रचना कहते
थे
और चल देते
थे
ख्याल मुझे जँचा
‘सुन्दर रचना’
आलोचना तो उसकी
हो सकती है
जो समझ आए
कोई भी वह रचना
जो समझ न
आए
सुन्दर ही हो
सकती है
गाँठ बाँध ली
यह बात
अब कोई भी
रचना
जो समझ न
आए
उस पर टिप्पणी
कर देता हूँ
सुन्दर रचना
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