तुम्हारे घर सुना सबेरा बहुत है
यहाँ रात बीती अँधेरा बहुत है
समय की हैं बातें सबेरे-अँधेरे
कहीं नींद, कहीं रतजगा बहुत है
तुम्हें मिलते हैं साथी बहुत से
हमें तन्हाई का सहारा बहुत है
याद करना और आँसू बहाना
वक्त बिताने का बहाना बहुत है
कभी तो निकलोगे रस्ते हमारे
दीदार का ये आसरा बहुत है
मिलना तो कहना भुलाया नहीं था
जीने को बस ये फसाना बहुत है
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