Wednesday, 21 May 2014

अकविता

-          विष्णु प्रभाकर

मुँह-से-मुँह मिलाकर
बोले वह
बुर्र बुर्र बुर्र
कानाबाती कुर्र कुर्र कुर्र
टीली-लीली झर्र-झर्र-झर्र
अरे रे रे
दुर्र दुर्र दुर्र

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