घोंघा भी चलता है तो रेत में, धूल में उसके चलने का निशान बनता है फिर मैं तो एक मनुष्य हूं। कुमार अंबुज
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ब्लागर
....लाज़वाब गज़ल गज़ल का हर शेर मर्मस्पर्शी....मन को छूती हुयी गज़ल
ReplyDeleteबहुत लाजबाब और सार्थक ग़ज़ल की प्रस्तुति.
ReplyDeleteराजेन्द्र जी आपका आभार!
Deleteमूर्खता दिवस की मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (01-04-2013) के चर्चा मंच-1181 पर भी होगी!
ReplyDeleteसूचनार्थ ...सादर..!
गुरूदेव आपका आभार!
Deletekafi sundar prstuti he....
ReplyDeleteआपका आभार!
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteभई वाह ... हर शेर लाजवाब ...
ReplyDeleteपानी जरूर बह गया होगा ... ओर सभी शेर भी कमाल के ...
आपका आभार! आपकी हौसला अफज़ाई से लिखने का साहस बढ़ा!
Deleteगहन अनुभूति बेहतरीन सुंदर सहज सार्थक रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
मुझे ख़ुशी होगी