शाम अब गहराने लगी
जो गए थे
घर आने लगे
इक हमारा इंतजार बाकी है
जो बिछड़े थे
याद आने लगे
कुछ मासूमियत थी चेहरे
पर
कुछ बातों से
धोखा खाने लगे
बच्चों को ये
सीख दे देना
किसी का दिया
न खाने लगे
अबकी सावन खूब
बरसेगा
खेत अभी से
लहलहाने लगे
उम्र बाकी यूं
ही कट जाएगी
क्यूं इस कदर
घबराने लगे
आदमी की कीमत
कुछ नहीं
पर बाजार में
वजन कराने लगे
- बृजेश नीरज
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