tag:blogger.com,1999:blog-31750614862513056382024-02-19T08:19:35.169+05:30Voice of Silenceघोंघा भी चलता है तो रेत में,
धूल में उसके चलने का निशान बनता है
फिर मैं तो एक मनुष्य हूं।
कुमार अंबुज
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.comBlogger240125tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-26107647085413357492015-12-19T20:54:00.001+05:302015-12-19T20:54:50.380+05:30उम्मीद
गम तो दिए हैं जिंदगी ने लेकिन
उम्मीद
है कि दीदारे-यार होगा
बहाने
बहुत हैं जीने के लेकिन
जीता हूँ कि विसाले-यार होगा
होती है जब हवाओं में जुंबिश
लगता है तू आस-पास होगा
रात की तन्हाइयाँ डराती नहीं
किसी सुबह तू मेरे साथ होगा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-87700604303044461562015-12-19T20:34:00.001+05:302015-12-19T20:34:52.009+05:30मिथक
इस रात का सबेरा नहीं है
तू मिलेगा आसरा नहीं है
मन्दिर मस्जिद आरती अजानें
सब कुछ है, आस्था नहीं है
टूटे मिथक सभी जिंदगी के
साँसें
हैं लालसा नहीं है
मौसम का ये कैसा मिजाज
चंदा नहीं है, सूरज नहीं है
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-77882621227546094372015-12-18T20:40:00.001+05:302015-12-18T20:40:15.914+05:30कुण्डलिया छंद
अम्बे तेरी वंदना,
करता हूँ दिन-रात
मिल जाए मुझको
जगह, चरणों में हे मात
चरणों में हे मात,
सदा तेरे गुण गाऊँ
चरण-कमल-रज मात,
नित्य ही शीश लगाऊँ
अर्पित हैं
मन-प्राण, दया करिए जगदम्बे
शब्दों को दो
अर्थ, मात मेरी हे अम्बे
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-69772341672508084922015-12-18T20:28:00.001+05:302015-12-18T20:28:30.992+05:30यादों में
तुम्हारे घर सुना सबेरा बहुत है
यहाँ रात बीती अँधेरा बहुत है
समय की हैं बातें सबेरे-अँधेरे
कहीं नींद, कहीं रतजगा बहुत है
तुम्हें मिलते हैं साथी बहुत से
हमें तन्हाई का सहारा बहुत है
याद करना और आँसू बहाना
वक्त बिताने का Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-7252437540027786232015-12-16T22:03:00.001+05:302015-12-16T22:03:23.061+05:30कहाँ के थे
थोड़ा बरस के थम गए वो बादल कहाँ के थे
आँखों में नमी शेष है आँसू यहाँ पे थे
इस माहौल को देखते सोचता हूँ एक बात
आदम यहां हैं तो अहरमन कहां पे थे
कई बरस हो गए कोई शोर नहीं हुआ
लगता है क्या आपको गांधी यहां पे थे
अब तो मिसालें भी न रहीं कुछ कहने के लिए
बातों को यूं समझ लें वो समझदार कहां के थे
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-14038909257729607132015-12-16T22:02:00.001+05:302015-12-16T22:02:21.661+05:30भोजपुरी गीत
इ बिदेसी
बिया से न
फूल देसी फुलाई
अब पछुआ
बयार रउरा लइ
गयल बहाई
बदल वेश
भूषा भइया इतरा
के डोलल
जइसे देसी
कुतिया मराठी बोल
बोलल
रउरा तौ
आपन माटी अब
गयल भुलाई
इ बिदेसी
बिया से न
फूल देसी फुलाई
अंगरेजी में
कहेला अब बाई
टाटा
बचुआ अब
फैशन मा, बाप
का कहे पापा
काहे लजाला
भइया बोले म
तू माई
इ बिदेसी
बिया से न
फूल देसी फुलाई
काहे लजाला
बोले में अपन
भाखा
सुगंध से
माटी के महकल
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-6261726566204348052015-12-16T22:01:00.001+05:302015-12-16T22:01:43.244+05:30भोजपुरी गीत
भुला दिहला काहे इ माटी इ बोली
काहे नीक लागे परदेसी बोली
महुआ मकई क विदेस मा डिमांड बा
बजरा कै रोटी अबहूं सोंधात बा
फिनु काहे भरे तू पिज्जा से झोली
काहे नीक लागे परदेसी बोली
बचपन बीतल जोने देस जवार मा
ई भाषा त भइया ओकर परान बा
कइसे भुलाला तू ई पुरबी बोली
काहे नीक लागे परदेसी बोली
मिश्री से मीठ बा आपन भोजपुरी
ठंडी फुहार जइसन अपन भोजपुरी
काहे बिसार दिहला इ पुरबी बोली
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-64860812439213295912015-12-16T22:00:00.001+05:302015-12-16T22:00:45.639+05:30बाल गीत/ सूरज
देखो देखो आया
सूरज
नया सबेरा लाया
सूरज
अंधकार का नाश
हो गया
जग उजियारा लाया
सूरज
पूरब में है
लाली छायी
गोल सलोना भाया
सूरज
सपनों से तो
जागे हैं हम
कुछ उम्मीदें लाया
सूरज
बागों के सब
फूल हंसे
नई चेतना लाया
सूरज
अपने अपने घर
से निकलो
आसमान पर छाया
सूरज
सभी समय से
काज करो तुम
यह संदेशा लाया
सूरज
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-59186940429084274552015-12-16T21:59:00.001+05:302015-12-16T21:59:36.432+05:30पुलिस भर्ती में एक प्रतिभागी (वीर छंद)
भरती खातिर आये लल्ला, सीना झट से दिया फुलाय।
नाप सको तो नापो सीना, पसली पसली दिया दिखाय।।
पेट पीठ सब एक हो गयी, दम ऐसा कुछ दिया लगाय।
प्रत्यंचा सी देह तन गयी, तन कुछ ऐसा दिया लचाय।।
गर्दन अकड़ी सीना फूला, पाछे हाथ दिया फैलाय।
सूरत
जैसे आम चुसा हो, अँखिया भीतर कोटर नाय।।
सरपट झटपट दौड़ेगा वो, क्या दौड़े सब पेट फुलाय।
दुर्बल इसको समझ रहे जो, थुलथुल काया नहीं सुहाय।।
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-42730452680481880312015-12-16T21:58:00.003+05:302015-12-16T21:58:57.773+05:30गीतिका छंद/ क्रिकेट
खेल ऐसा ये अनोखा हम सभी को भा गया
देश का हर खेल छूटा, यह विदेशी छा गया
खेल की दीवानगी है, रंग ऐसा चढ़ गया
छोड़ के सब काम अपने, मन इसी में रम गया
आड़ में इस खेल की बाजार अब सजने लगे
बोलियां अब लग रहीं, ईमान अब बिकने लगे
लोभियों ने यूं डसा है, दंश अब चुभने लगे
अब नियंता खेल के, इस खेल को छलने लगे
लालचों ने जाल ऐसा कुछ बुना इस खेल में
भावना पीछे गयी, बस धन बचा इस खेल में
लोमड़ी, गिरगिट Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-20945023690570064462015-12-16T21:58:00.001+05:302015-12-16T21:58:15.944+05:30पुलिस भर्ती का एक अभ्यर्थी (अवधी घनाक्षरी)
सिखावा
रे हमहूं का, अइसा जतन कछु
हम होइ
जाई अब, पास ई भरती मा।
मोट
ताज लोग सब, आय तो इहां बाटेन
कइसे
होइ पइबै, पास ई भरती मा।
जाने
किता चौड़ा चाहे,
सीना पुलिस खातिर
थक गय
फुलाय के, छाती ई भरती मा।
तनि गय
शरीर ई, तीर कमान जइसे
तबहूं
न ई भइले, खुश ई भरती मा।
राम
जाने कौन गति, होइहै हमार इहां
धुपवा
झुराय डारे, तन ई भरती मा।
नाप
जोख करै वाले, सब ई मोटान अहां
भूलि
गयन आपन, दिन ई भरती Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-79797720710537748992015-12-16T21:56:00.001+05:302015-12-16T21:56:13.971+05:30सुन्दर रचना
शहर में
एक चित्रकला प्रदर्शनी
थी
कुछ मार्डन आर्ट
की पेंटिंग्स लगी
थीं
मैंने देखा उन्हें
गौर से
बार-बार
इधर से उधर
से
कुछ समझ न
आया
और लोग भी
आ रहे थे
गौर से देखते
थे
उन पेंटिंग्स को
सुन्दर रचना कहते
थे
और चल देते
थे
ख्याल मुझे जँचा
‘सुन्दर रचना’
आलोचना तो उसकी
हो सकती है
जो समझ आए
कोई भी वह रचना
जो समझ न
आए
सुन्दर ही हो
सकती है
गाँठ बाँध ली
यह बात
अब कोई भी
रचना
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-30727408927666952502015-12-16T21:53:00.003+05:302015-12-16T21:53:52.550+05:30घनाक्षरी
चौड़ी नहीं छाती मेरी, हौसला
तो है बुलंद,
मुझे भी अब सेवा में, मौका तो दिलाइए |
निर्धन गरीब हूँ मैं, दुबला शरीर मेरा,
बस इसी कारण से, न मौका छुड़ाइए |
खाकी मुझे मिल जाय, फिर चिंता दूर जाय,
खाऊँ पीऊँ, मोटा होऊँ, मौका तो दिलाइए |
गाँव के पड़ोसी सभी, बहुत सताते मुझे,
रौब ज़रा गाँठ सकूँ, वर्दी तो दिलाइए |
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-23619214717746475712015-12-16T21:53:00.001+05:302015-12-16T21:53:10.178+05:30चौपाई/ माता की स्तुति
जय अम्बे जय मातु भवानी
जय जननी जय जगकल्यानी
जय बगुला जय विन्ध्यवासिनी
जय वैष्णव जय सिंहवाहिनी
कण कण में है वास तिहारा
तुम जग की हो पालनहारा
करूणा की हो सागर माता
तू सबकी है भाग्य विधाता
दूजा को है तुम सम ज्ञानी
मैया तू जग की महरानी
हम सब माता बालक तेरे
हित अनहित सब है वश तेरे
शरण पड़े माता हम तोरे
मात करूं विनती कर जोरे
इन चरणों में शीश नवावें
तेरी महिमा नित प्रति गावें
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-27889740940793287552015-12-16T21:52:00.003+05:302015-12-16T21:52:10.843+05:30घनाक्षरी/ माता स्तुति
तोहरे दुआरे मात, खड़े दोउ कर जोरे
अब तो आप आइके, दरस दिखाइए
तोहरी शरण आया, तेरा ये कपूत मात
सेवक को माँ अपनी,
शरण लगाइए
इक आस तोरी मात, दूजा को सहाई मोर
अइसे न आप मोरी, सुधि बिसराइए
बिपत जो आन पड़ी तुझको पुकारूँ मातु
आप ही अब आइके, पार माँ लगाइए
न ही माँगूँ सोना
चांदी, न ही धन दौलत माँ
अपने चरण मोहे, आप माँ बिठाइए
इतनी अरज तोसे, क्षमा अपराध कर
अपने हृदय में ही,
मोको माँ बसाइए
&Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-33484747852442570592015-12-16T21:46:00.001+05:302015-12-16T21:46:53.532+05:30साहित्यकार
एक दिन
यूँ ही बैठे-बैठे
कोई कविता पढ़ते-पढ़ते
जी मचला
दिल हुमसा
उठाई कलम
लिख डाली मैंने भी
एक कविता
लोगों को पढ़ाई
अपनी नई कविता
बहुत तारीफ हुई
वाह वाह मिली
तब से
मैं साहित्यकार हो गया
बंद कर दीं
औरों की रचनाएँ पढ़नी
अब किसी और की
रचना की तारीफ नहीं करता
सब लगते हैं मुझे
गौढ़
मेरे कद से छोटे
मैंने समझा नहीं
यह रहस्य
साहित्य के महासागर में
लहरों की गिनती नहीं होती
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-17248307556551579092015-12-05T12:40:00.000+05:302015-12-16T12:40:12.878+05:30नशा
कइस हुइ गयल
फैशनवा राम
नशा मा डूबा
जमनवा राम
घरै क सुधि
नाहीं
झूमै मगन हुई
साकी से नेहा
पत्नी बिसरि गई
लरिका हुइ गय
बेगनवा राम
नशा………….
बोतल मा खुद
का
ई डुबाय दीन्ही
पइसा कौड़ी सब
ई लुटाय दीन्ही
दर दर भटिकै
इ मनुजवा राम
नशा……………………..
गटक जब लीन्हा
तौ सिर चढ़
बोलै
रोवै मुस्काए
अउ बर बर
बोलै
नागिन स लहिरे
बदनवा राम
नशा………………….
पहिले तो सबका
बहुत नीक लागै
ई सगरी दुनिया
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-60753048445201813472015-12-03T12:26:00.000+05:302015-12-16T12:28:40.114+05:30निराशा
पास न उम्मीद कोई रह गयी
उम्र भी बस आह बनकर बह गई
रात सारी कट गयी बस कैद में
आस कोई अब न दिल की रह गयी
अब मेरे जिस्म में साँस
चलने लगी
तू मुझे याद आने की कोशिश न कर
जब ये गम की अँधेरी घटा छा गयी
बेवजह मुस्कुराने की कोशिश न कर
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-89470014806244712662015-12-02T12:25:00.000+05:302015-12-16T12:28:25.254+05:30तस्वीर
जो जिंदगी धड़कनों में गुजरी
शमा उसकी तस्वीर ही तो है
याद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती तो है
आसमां जो पड़ गया नीला
ये दर्द की तासीर
ही तो है
जंजीरे-दर उदास सी रही
सबा कुछ गुनगुनाती तो है
दिन यूँ बदलता रहा
पैरहन
शाम उसका अंजाम ही तो है
समंदर है अब खामोश सा
दरिया में खलल सी तो है
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-4927476014819816802015-12-01T12:27:00.000+05:302015-12-16T12:28:09.148+05:30इल्म
अब किसी भी बात का जो इल्म होता नहीं
खो गए इस वजह से अब तक किनारे कई
रंग की पिचकारियों से
खेलती
है किरन जो
छूटते हैं बाग में रंगीन फव्वारे कई
कोयलों की कूक गायब ये सबा खुश्क सी
साँप, गोजर और बिच्छू घूमते हैं कई
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-50048762943901304192015-11-01T12:29:00.000+05:302015-12-16T12:29:36.421+05:30बेचारा
जाने-अनजाने
लोगों के बीच
हँसता-हँसाता हूँ
मेरे संग सब
मुस्कराते हैं
खिलखिलाते हैं
लेकिन जब
लगती है चोट कोई
बस देखते रहते हैं
सूनी आँखों से
कोई रोता नहीं मेरे साथ
मुँह से आवाज
आती है
च...च....च....च......बेचारा
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-22855741531276956382015-10-03T21:41:00.001+05:302015-10-03T21:41:47.879+05:30सम्हलो
इस तप्त माहौल में भी
तुम
बांसुरी की तान में मग्न हो
यह बांसुरी इस माहौल को ठंडा नहीं करेगी
सुनो,
शिखरों पर जमी बर्फीली चट्टानों के दरकने की
आवाज़
बर्फ पिघल रही है
पिघल रही हैं सड़कें
पिघल रहे हैं शरीर
मोम के पुतले की तरह
सैलाब उमड़ रहा है
इस सैलाब में बहते जा रहे हैं
पेड़, पत्ते, फूल
मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर
बाज़ार-महल
अभी यह अट्टालिका भी बहेगी
जिस पर खड़े तुम सुन रहे हो बांसुरी की तान
सम्हलो!
- Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-8847900831596198902015-04-12T23:47:00.001+05:302015-04-12T23:47:57.576+05:30हम लड़ेंगे साथी / पाश
हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता
है
प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी
क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर
बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर
हाथों पर पड़े घट्टों की क़सम खाकर
हम लड़ेंगे साथी
हम Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-29930789007035209592015-04-12T14:09:00.001+05:302015-04-12T14:09:18.721+05:30एकान्त-कथा / धूमिल
मेरे पास उत्तेजित होने के लिए
कुछ भी नहीं है
न कोकशास्त्र की किताबें
न युद्ध की बात
न गद्देदार बिस्तर
न टाँगें, न रात
चाँदनी
कुछ भी नहीं
बलात्कार के बाद की आत्मीयता
मुझे शोक से भर गयी है
मेरी शालीनता – मेरी ज़रूरत है
जो अक्सर मुझे नंगा कर गयी है
जब कभी
जहाँ कहीं जाता हूँ
अचूक उद्दण्डता के साथ देहों को
छायाओं की ओर सरकते हुए पाता हूँ
भट्ठियाँ सब जगह हैं
सभी जगह लोग सेकते हैंAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3175061486251305638.post-72972102954888359902015-04-12T13:43:00.001+05:302015-04-12T13:43:30.700+05:30कविता / धूमिल
उसे मालूम है कि शब्दों के पीछे
कितने चेहरे नंगे हो चुके हैं
और हत्या अब लोगों की रुचि नहीं –
आदत बन चुकी है
वह किसी गँवार आदमी की ऊब से
पैदा हुई थी और
एक पढ़े-लिखे आदमी के साथ
शहर में चली गयी
एक सम्पूर्ण स्त्री होने के पहले ही
गर्भाधान कि क्रिया से गुज़रते हुए
उसने जाना कि प्यार
घनी आबादी वाली बस्तियों में
मकान की तलाश है
लगातार बारिश में भीगते हुए
उसने जाना कि हर लड़की
तीसरे Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/07070644113445916071noreply@blogger.com0