Wednesday 13 March 2013

याद तेरी



ये बहारें ये फिजा सौगात तेरी गयी है
चांद ने घूंघट उतारा बात तेरी गयी है

याद आई, तू आया, क्या गिला करना किसी से
रात भर आंसू बहाएं बात तेरी गयी है

इन घटाओं ने जाने कौन सा जादू किया जो
शाम ढलती ही रही इस्बात तेरी गयी है

अब सहारा ढूंढते हैं तू नहीं जो साथ मेरे
तू कहीं होता यहीं क्यूं बात तेरी गयी है

रात की तन्हाइयां भी सालती हैं अब मुझे यूं
बात कुछ होती नहीं पर बात तेरी गयी है
                        - बृजेश नीरज

7 comments:

  1. Nice rhythmic poem!
    Well done!

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  2. बहुत खूब ... लाजवाब शेर हैं उनकी याद में .,..

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  3. आपका आभार!

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  4. Replies
    1. आपको रचना पसन्द आई लिखना सार्थक हुआ।

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